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Writer's pictureSoldier Stories Of Kashmir

फूंक दे

गुरप्रीत सिंह अरोड़ा | Gurpreet Singh Arora

 


आज़ादी की चिल्लम का,

एक और कश लगा कश्मीरी,

माल वही पुराना है,

आ एक पीढ़ी और सरेआम फूंक दे।





जाने कहां गया वो इन्कलाब,

जब गैर सियासतों से मांगी थी आज़ादी,

अब मज़हब और कौम के नाम पे,

अपनों की भी जान फूंक दे।

दोज़ख़ से खौफ़ज़दा कब तक करेगा,

कब तक करेगा कत्ल - ए - आम,

हूरों का लालच देकर,

आबादी तमाम फूंक दे।

कलम कि जगह हथियार थमा दिए,

और पहनाया जिहादी चोला

बच्चे क्या औरतें क्या और क्या ही बुजुर्ग

पूरी कि पूरी आवाम फूंक दे।









ठहर जा अब, रोक दे ये दहशतगर्दी,

कश्मीर को कर दे फिर से जन्नत,

कर ले अब तौबा अपने नापाक इरादों से,

फ़िज़ूल का ख़्याल - ए – इंतक़ाम फूंक दे।


                                       

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