Abid Daud Abidi
आबिद दाउद आबिदी
कविता कश्मीर में भाईचारे और एकजुटता के समाज में बढ़ने के लिए अपरंपरागत मार्ग का प्रयास करती है। एक साथ ऐसी यात्रा पर चलना जो जीवन को स्वर्ग जैसा बना दे। यदि सफलता मिली, तो कल के बेटे और बेटियाँ नए कश्मीर में साँस लेंगे जो एक महाकाव्य होगा।
जब हम साथ चलेंगे,
जब हम साथ बढ़ेंगे।
एक दौर वो भी आएगा
जब हम नफरत से बेसार होंगे
खिलौनों की दुकानों पे
यूँही मजे में आबाद होंगे
जिन भाइयों को कमज़र्फों ने
सियासी रंजिश में डुबाया है
जब गले लग्ग के इस फलक टेल
वो उर्स-इ-इंसानियत मनाएंगे
जब हम साथ चलेंगे,
जब हम साथ बढ़ेंगे।
क्या मेरा वजूद, क्या तेरा वेहम
सब घुल जायेगा इस वादी में
हर ज़ख्म, हर हादसा।
रह जाएगा तीरीख़ों में
रह जाएगा तो बस उस वाल्दा की दुआएं
जिसने पाला है हमें बड़े नाज़ से
लहू बहा एक दुसरे का
उस से नज़रें कैसे मिलाएंगे
जब हम साथ चलेंगे,
जब हम साथ बढ़ेंगे।
जिस दौर में बच्चों पे वाल्दैन का साया हो,
जी जमीं पे खुशियों का सरमाया हो
उसे हम साथ मिलकर अपने इस आशियाने में ढूंढेंगे
जब हम मिलके नफरत के अंधेरों को
अपने हौसलों की शमा से मिटायेंगे
बनायीं गयीं दूरियों को तब ही
हमकदम होकर पार करेंगे
जब हम साथ चलेंगे,
जब हम साथ बढ़ेंगे।
क्यों ग़ैरों का ज़हर अपनाया है
क्यों अपनों का लहू दफनाया है
चाँद तोहमतों के साये में
हमने तो अपना ही घर जलाया है
ये मिट्टी मेरी भी है, ये जन्नत तेरी भी है
इस सर-ज़मीन पे साथ चलकर ही
हम सुकून-ए-हयात पा सकेंगे
जब हम साथ चलेंगे,
जब हम साथ बढ़ेंगे।
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