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इक आधा पन्ना

Devang Dhyani

 

इक आधा पन्ना फिर लिखा जाएगा

बलिदान को फिर नया नाम मिल जाएगा

वसुंधरा का कर्ज़ जो चुका चला गया

उसी जननी में आज विलीन हो जाएगा।


विषम परिस्थितियों को झुठलाया जिसने

कर्म को अपना धर्म बना सदा

वो निडर - निर्भीक दुश्मन के समक्ष

मानों इक विशाल चट्टान हो खड़ा।


घर पर सदा कुशल - क्षेम बताई

किसी पीड़ा का तिल मात्र ज़िक्र नहीं

कहता ऐसी जीवनी है जिसकी

माटी की रक्षा और हर बार प्रेम की मचधार नयी।


वो बूढ़ी आंखों में आज भी खिलखिलाता है

चलना उसे जिन्होंने सिखाया था

हाथों के कंगन की खनक आज भी उसके नाम से है

कुड़माई में जो उसने प्रेम से पहनाया था।


वो स्मृतियां ज़िंदा हैं वो हंसी भी

गूंजती है घर और बंकर में भी

कहा था ना आधा पन्ना ही होगा

उसपर जो अब तलख था हम सबके बीच।



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